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वास्तु विशेषज्ञ की आवश्यकता

वास्तु विशेषज्ञ की आवश्यकता

वास्तु शास्त्र सिर्फ ईंट, पत्थर, लौहे और अन्य निर्माण सामग्री से, मंहगे आर्किटेक्ट की मदद से बनवाये खूबसूरत और भव्य भवन के निर्माण की कला मात्र नहीं है। जिसमें नक्षा बनाकर अपनी सुविधा और शानोशौकत के लिए  और सुविधानुसार कक्षों का भव्य और खूबसूरत निर्माण करवा लिया जाता है। ऐसे भवन दूसरों की ईष्या का विषय तो बन सकते हैं, लेकिन भवन में रहने वालों के जीवन में सुख का संचार कर सकें, उनकी आत्मा को संतोष दे सकें, धनार्जन के बेहतर अवसर प्रदान कर सकें, वैवाहिक जीवन और संतानादि के सुख को पूर्ण रूप से दे सकें यह आवष्यक नहीं होता।

वास्तु शास्त्र भवन बनाने की कला नहीं बल्कि यह संपूर्ण शास्त्र है, जो कि पूर्णतया वैज्ञानिक है। जो कि एक व्यक्ति के पूरे जीवन से जुडे़ सभी क्रिया कलापों को प्रभावित करता है। यह व्यक्ति के संपूर्ण व्यक्तित्व, संपदा, सुख-दुःख, मान-सम्मान, मानसिक संवेगों, स्वभाव, दूसरों से किए जाने वाले व्यवहार, मन की वृत्तियों, शरीर की स्वस्थ या रुग्णावस्थ, धर्म परायणता, कर्तव्य अकर्तव्य के अहसास, दायित्वों के निर्वहन, भोजन की विषिष्ट पसन्द नापसन्द, शुभाशुभ कर्म, आजीविका हेतु अपनाये गए संसाधनों, सफलता-असफलता आदि जीवन के सर्वांगीण भावों पर प्रभाव डालता है।

वास्तुशास्त्र के सिद्धान्त पंचमहाभूतों के सिद्धान्त पर आधारित हैं, जिसके अनुसार आकाश, वायु, अग्नि, जल पृथ्वी इन पांचतत्वों से मिलकर पूरी सृष्टि का निर्माण हुआ है। इन्हीं के संतुलन से मनुष्य का मानसिक शारीरिक विकास निर्भर होता है। इन्हीं पांच तत्वों से मनुष्य की भावनाएं, संवेदनाएं, विचार, इच्छाएं, निर्णय, बुद्धि, ज्ञान की दिशा, आत्मिक साहस, शारीरिक बल, प्रेम आदि संवेग, कलाओं के प्रति रूझान आदि सभी बातें तय होती हैं। इन्हीं पांच तत्वों के संतुलन से जीवन प्राकृतिक गति से चलता है और असन्तुलन से मनुष्य के सभी शारीरिक मानसिक भावों में असंतुलन आता है, जिससे उस मनुष्य को अलग अलग तरह से कठिनाइयों का सामना भी करना पड़ता है।

वास्तुशास्त्र ना सिर्फ पंचमहाभूतों के ज्ञान से जुड़ा है बल्कि पूर्णतया वैज्ञानिक तथ्यों को भी अपने अन्दर समाहित किया हुआ है। वास्तुशास्त्र पृथ्वि की घूर्णन गति से उत्पन्न ऊर्जा का मनुष्य जीवन में किस तरह बेहतर उपयोग किया जा सकता है यह सिद्धान्त तय करता है। पृथ्वि पर उपलब्ध विद्युत चुम्बकीय प्रवाह का मनुष्य के लिए श्रेष्ठतम प्रयोग कैसे किया जा सकता है यह सिद्धान्त तय किए हैं। इन अदृश्य शक्तियों के साथ ही प्राकृतिक रूप से ईश्वर द्वारा प्रदत्त अमृत तुल्य वायु प्रकाश का मनुष्य जीवन के लिए श्रेष्ठतम उपयोग भी वास्तुशास्त्र के सिद्धान्तों में स्पष्ट रूप से किया गया है।

हमारे वास्तु विशेषज्ञ आपको बताएंगे कि भूमि भवन से जुड़े इन्हीं दिव्य वैदिक सिद्धान्तों द्वारा आपके जीवन को कैसे बेहतर बनाया जा सकता है।

वास्तुशास्त्र के सिद्धान्तों का पालन हम किसी भी भवन के निर्माण से पहले से शुरू कर देते हैं तो हमारी समस्याएं कम से कम रह जाती है। यदि हम भूखण्ड का चयन सही करते हैं तो निश्चित रूप से हम अपने उद्देश्यों और लक्ष्यों की तरफ एक सफल कदम बढ़ा चुके होते हैं। और यदि भूखण्ड के चयन में हमने वास्तु के नियमों की अवहेलना की है तो निश्चय ही हम अपने उद्देश्यों से पहला कदम ही विपरीत दिशा में बढ़ा चुके होते हैं। भूमि का चयन उस भूमि के उपयोगों से जुड़े हमारे उद्देश्यों पर निर्भर हेाता है।

वास्तु  के नियम भूमि के उपयोग पर निर्भर करते हैं। जैसे एकल रिहायशी भवन, एकल व्यावसायिक भवन, ट्विन शेयरिंग रिहायशी, ट्विन शेयरिंग व्यावसायिक, ग्रुप हाउसिंग काॅलोनी प्रोजेक्ट, टाउनशिप प्रोजेक्ट आदि के वास्तु सिद्धान्त एक दूसरे से भिन्न हैं। व्यावसायिक भवनों का वास्तु भी हाॅस्पिटल, रेस्टोरेण्ट, डिपार्टमेंट स्टोर, होटल, हार्डवेयर, सोफ्टवेयर, स्कूल, शैक्षणिक संस्था या अन्य प्रकार के व्यवसाय के अनुसार तय होता है। इसी तरह फैक्ट्रियों का वास्तु भी फैक्ट्री में हो रहे निर्माण कार्य, मशीनों के प्रकार और उनकी साइज आदि पर निर्भर करता है।

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